‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (5)

मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी

अब दर्द-ए-दिल बरहम हुआ बे-दम मिरा दम ख़म हुआ
आदत पड़ी यूँ ज़ख़्म की हर ज़ख़्म ख़ुद मरहम हुआ

उम्मीद थी बरसात की सूखे हुए सहराओं को
बादल मगर इस बार भी दरिया में जा के ज़म (मिल जाना) हुआ

शहर-ए-तमन्ना की फ़ज़ा में भी तग़य्युर (उतार-चढ़ाव) आ गया
जब भी बहाया अश्क-ए-दिल तब्दील कुछ मौसम हुआ

सूरज को डसता ही रहा कल रात भर बस ये ख़्याल
क्यों चाँदनी रोती रही क्यों रात भर मातम हुआ

किसको सुनाएँ हम ग़ज़ल किस से मिले ने’मुल-बदल (किसी चीज के बदले वैसी ही चीज)
ज़ौक़-ए-अदब (साहित्य प्रेम) भी आज कल पहले से कुछ कम-कम हुआ

हालात की गरमी ने ‘तालिब’ दिल बदल के रख दिया
ये मोम था पत्थर कभी लो मोम से शबनम हुआ

– मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

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