‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (11)

मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी

अब तो आँखों में ख़ूँ नहीं आता
फिर भी दिल को सुकूँ नहीं आता

जो हिसार-ए-ख़िरद (अक़्ल का घेरा) में रहते हैं
उनको पास-ए-जुनूँ (दीवानगी का ख़्याल) नहीं आता

उसकी जादू बयानी क्या समझूँ
जब समझ में फ़ुसूँ (जादू) नहीं आता

दिल का रोना दिखाई दे कैसे
नज़र अश्क-ए-दरूँ (अन्दर का आँसू) नहीं आता

इस तबाही के बाद भी लब पर
ज़िक्र-ए-हाल-ए-जबूँ (तबाही की चर्चा) नहीं आता

सच है ‘तालिब’ रियाज़ (अभ्यास) है लाज़िम
शे’र कहना तो यूँ नहीं आता

– मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

यह भी पढ़ें : ‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (10)

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