“शब्दों में हुंकार, काव्य में क्रांति : तीन स्वर एक भारत”

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जहाँ कविता बनी राष्ट्र की चेतना, और शब्द बने भारत माँ की पुकार

कोलकाता : स्वतंत्रता दिवस की 79वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर समर्पण ट्रस्ट एवं अंतर्राष्ट्रीय मारवाड़ी सम्मेलन (कोलकाता) द्वारा आयोजित “तीन स्वर – एक भारत” काव्य संध्या राष्ट्रभक्ति, ओज, चेतना और सांस्कृतिक एकात्मता का एक ऐसा जीवंत संगम बन गई, जिसकी अनुगूंज देर तक श्रोताओं के मन में प्रतिध्वनित होती रही। यह आयोजन केवल कविता पाठ का कार्यक्रम नहीं था, यह एक विचार का उद्घोष था – एक पुकार थी उस भारत की, जिसकी आत्मा शब्दों के माध्यम से गूंज उठी।

ईस्टर्न ज़ोनल कल्चरल सेंटर (EZCC), साल्टलेक, कोलकाता में आयोजित यह साहित्यिक संध्या केवल काव्य का मंच नहीं थी, वह भारतमाता को समर्पित एक विचार-यज्ञ थी, जहाँ कवि नहीं, जैसे समय के सिपाही बोल रहे थे — कविता नहीं, जैसे राष्ट्र की चेतना स्वर पा रही थी। इस आयोजन का शुभारंभ प्रसिद्ध उद्योगपति एवं समाजसेवी श्री अशोक बाजोरिया द्वारा भगवान गणेश की प्रतिमा पर माल्यार्पण और अन्य अतिथियों द्वारा तुलसी पौधे में जलार्पण के साथ हुआ — जो प्रतीक था प्रकृति, संस्कृति और चेतना के समन्वय का। ट्रस्ट एवं सम्मेलन के सभापति श्री दिनेश बजाज ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि भाषाई अस्मिता और सांस्कृतिक खिंचाव के इस समय में “तीन स्वर – एक भारत” वास्तव में एक प्रासंगिक सांस्कृतिक संदेश है — एकता में विविधता का सशक्त उदाहरण। इस आयोजन में नाइजर के कौंसुल श्री राजेंद्र खंडेलवाल, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर शिक्षण विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सोमा बंद्योपाध्याय, पीपीपी ग्रुप के राजेश सोंथलिया और थंडरबोल्ट कोलकाता के पवन पाटोदिया सहित अनेक विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे। संस्था के सदस्य मनीष बजाज ने संस्था की विविध गतिविधियों की जानकारी दी।
कार्यक्रम में जिन तीन राष्ट्रस्वरधारी कवियों ने मंच साझा किया, वे केवल कवि नहीं, राष्ट्र की आत्मा के प्रवक्ता प्रतीत हुए।

डॉ. राहुल अवस्थी ने जब कहा कि “भीख मांगने से अधिकार मिलता नहीं है,अधिकार तो स्वर्ग में भी बंटते नहीं…यदि सदन में भगत सिंह बम दागते नहीं, तो क्रांति के धमाकों के बग़ैर ये जागते नहीं!” तो उनके स्वर में क्रांति, चेतावनी और इतिहास की गर्जना एक साथ गूंज रही थी। योगेंद्र शर्मा की कविताओं ने भारतभूमि के सांस्कृतिक गौरव को दिव्यता में परिवर्तित कर दिया — उनकी पंक्तियों में तक्षशिला, अमरनाथ और शिवपुराण जैसे प्रतीक केवल इतिहास नहीं, जीवंत धरोहर बन उठे।”जिस धरती का चरणामृत ही रामसेतु का सृजन करें, अमरनाथ बन महादेव जिसके मस्तक पर शोभित हैं, शिवपुराण जिसका गान करें, वह भारतमाता वंदनीय है, पूजनीय है!” वहीं राष्ट्रपुत्री समीक्षा सिंह ने हिंदुत्व, सत्य और बलिदान की ऐसी निर्भीक वाणी में कविताएँ पढ़ीं, जिसने श्रोताओं को भीतर तक झकझोर दिया। जब उन्होंने कहा “पीर लिखूंगी हर हिन्दू की, हर जेहादी कृत्य लिखूंगी, भाड़ में जाये भाईचारा — मैं केवल सत्य लिखूंगी” तो यह स्वर केवल स्त्री का नहीं, यह राष्ट्रमाता की अस्मिता की रक्षा की प्रतिज्ञा थी।
ट्रस्ट के महासचिव श्री प्रदीप ढेडिया ने इस मौके पर कहा कि यह आयोजन केवल काव्य संध्या नहीं, बल्कि एक पीढ़ी को राष्ट्रप्रेम, आत्मचिंतन और सांस्कृतिक चेतना से जोड़ने का संकल्प है। उन्होंने कहा कि जब कविता उच्चारण न होकर हुंकार बन जाए, तो वह राष्ट्रचेतना का स्वर बन जाती है — यही इस आयोजन की आत्मा थी।

कार्यक्रम के समापन तक सभागार भारत माता की जय, जय हिंद, वंदे मातरम् और जय श्रीराम जैसे घोषों से गूंजता रहा, और श्रोता देर तक अपने स्थान पर स्थिर रहे, मानो यह कोई आध्यात्मिक अनुष्ठान हो। ट्रस्ट के अध्यक्ष निरंजन अग्रवाल ने कहा कि “तीन स्वर – एक भारत” ने यह सिद्ध कर दिया कि कविता केवल मनोरंजन नहीं, वह राष्ट्रनिर्माण का उपकरण बन सकती है — और जब तीन ओजस्वी स्वर एक भारत की संकल्पना के लिए उठते हैं, तब शब्द केवल अक्षर नहीं रहते, वे इतिहास रचते हैं। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार डाॅ, जय प्रकाश मिश्र एवं धन्यवाद ज्ञापन संस्था के सदस्य पंकज भालोटिया ने किया। आनंद इवेंट्स द्वारा कार्यक्रम का प्रबंधन किया गया।

इस काव्यात्मक संध्या की गरिमा को बढ़ाने में जिन गणमान्यजनों की उपस्थिति रही, उनमें प्रमुख थे — ईश्वरी प्रसाद टांटिया, अभ्युदय दुगड़, दुर्गा व्यास, गिरधर राय, पद्मश्री पोद्दार, राजित भूतोडिया, अशोक ढेडिया, बसुमती डागा, राज कुमार शर्मा, लक्ष्मण अग्रवाल, अमन ढेढ़िया, गणेश अग्रवाल, संजय जैन, प्रीति ढेडिया, ज्योति खेमका, प्रदीप अग्रवाल, विशाल केडिया, हरी सोनी, पंकज अग्रवाल, राजीव जायसवाल, धर्मेंद्र जायसवाल, पारष मिश्रा, विनोद शर्मा।

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