डा.एस.आनंद की कलम से व्यंग्य कविता ‘लाचारी’

डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार

लाचारी

वह हाथ जोड़ रहा था
पांव पकड़ रहा था
अपनी टांगों पर
खड़ा नहीं हो पा रहा था।
मैंने उसे बचाया
गले से लगाया
और उसी कमअक्ल ने
मुझे ही जेल भिजवाया।
जाते-जाते कहा-
तुम्हारे पेट में
अवैध कीड़े पल रहे हैं
अब यह मत कहना
हवन करते हाथ जल रहे हैं
-डा.एस.आनंद

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