EWS Reservation: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, EWS आरक्षण रहेगा बरकरार

Supreme Court decision on EWS Reservation: आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार अहम फैसला सुनाया और कहा कि यह संविधान के खिलाफ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच में से 3 जजों ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसके बाद यह आरक्षण जारी रहेगा।

बता दें कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाले 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली 30 से ज्यादा याचिकाएं दाखिल की गई थीं। चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच संदस्यीय बेंच ने 27 सितंबर को हुई पिछली सुनवाई में फैसला सुरक्षित रख लिया था।

5 में से तीन जजों ने आरक्षण के पक्ष में सुनाया फैसला

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण संबंधी 103वें संविधान संशोधन को बरकरार रखते हुए कहा कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने भी दाखिला और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस आरक्षण बरकरार रखा। चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित (UU Lalit) ने आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के फैसले को खिलाफ फैसला सुनाया। जस्टिस रवींद्र भट्ट ने आरक्षण के खिलाफ फैसला सुनाया और कहा कि यह मूल भावना के अनुकूल नहीं है। उन्होंने कहा कि एसटी, एससी और ओबीसी को आरक्षण से बाहर रखना ठीक नहीं है।

27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा था सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस कानूनी सवाल पर 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है। शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं और ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे ‘‘पिछले दरवाजे से’’ आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था।

केंद्र सरकार ने 2019 में लागू किया था आरक्षण

बता दें कि केंद्र सरकार ने जनवरी 2019 में 103वें संविधान संशोधन के तहत शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण (EWS Reservation) देने का फैसला किया था। केंद्र के इस फैसले को तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके (DMK) सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे चुनौती दी थी।

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