‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (32)

मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी

ख़ार (कांटा) आए या फिर गुलाब आए
देखिए उसका क्या जवाब आए

उसके रुख़्सार (चेहरा) को छुआ जब भी
आरिज़-ए-गुल (फूल का चेहरा) पे क्यों हबाब (बुलबुला) आए

मुझ में वो गुम हो और मैं उसमें
ख़्वाब आए तो ऐसा ख़्वाब आए

तुझ से पहले जचा न बाद तिरे
रहगुज़र (रास्ता) में कई जनाब आए

बुझ रहा है जो ख़ुद दिया ‘तालिब’
आज शायद वो आफ़ताब (सूरज) आए

■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

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