गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
मैं अपनी ख़ता की सज़ा चाहता हूँ
मैं वो हर्फ़ हूँ जो मिटा चाहता हूँ
मिरा हौसला देख क्या चाहता हूँ
तिरा हौसला देखना चाहता हूँ
अजब कश्मकश इश्क़ की राह में है
जो क़ुरबत (नज़दीकी) मिली फ़ासला चाहता हूँ
मैं मक़्तल (क़त्ल करने की जगह) में आया हूँ ख़ुद क़त्ल होने
तो क़ातिल से क्यों मश्वरा चाहता हूँ
मुझे अपने आमाल (आचार-व्यवहार) भी देखने हैं
मैं अपने लिये आईना चाहता हूँ
मिरे दुश्मनों को भी अच्छी समझ दे
ख़ुदा से ये सुब्ह-ओ-मसा (शाम) चाहता हूँ
तमन्ना है ‘तालिब’ मुझे ताज़गी की
हरा ज़ख़्म हर दम हरा चाहता हूँ
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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