‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (37)

मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी

कहाँ-कहाँ उसे ढूँढेगी अक़्ल क्या मालूम
सफ़ीना (नाव) शौक़ का डूबा कहाँ ख़ुदा मालूम

न जाने किसने बनाया है राहबर उसको
जिसे न ख़ुद की ख़बर है न रास्ता मालूम

वो प्यास तो लब-ए-दरिया से लौट आएगी
दरअसल है उसे असग़र (नाम-कर्बला के सबसे कम उम्र शहीद) की कुछ अदा मालूम

लगाए रखते हैं चेहरों से सब कई चेहरे
ये आईने को अभी तक नहीं हुआ मालूम

जो नागवार बहुत थी किसी ज़माने में
वो बात आज ज़माने में है बजा (दुरुस्त) मालूम

वो ज़ुल्म करता है पैहम (लगातार) ही ज़ुल्म करता है
कब उसको ज़ुल्म की होती है इन्तिहा मालूम

दिखाऊँ ज़ख्म किसी को भी किस लिए ‘तालिब’
दिया है जिसने मरज़ (बीमारी) उसको है दवा मालूम

 मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

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