समृद्ध और सफल जीवन की कुंजी

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ओशो

ओशो की नजर से आध्यात्म की राह

ध्यान का क्या अर्थ होता है?

ध्यान का अर्थ होता है, जो संपदा तुम लेकर आये हो इस जगत में, जो तुम्हारे अंतरात्मा में छिपी है, उसे उघाड़कर देख लेना, पर्दे को हटाना। अपनी निजता को अनुभव कर लेना। वह जो भीतर निनाद बज रहा है सदा से सुख का, उसकी प्रतीति कर लेना। फिर तुम बाहर सुख न खोजोगे। भीतर का सुख इतना पूर्ण है, ऐसा परात्पर, ऐसा शाश्‍वत है कि उसकी एक झलक मिल गयी तो सारे जगत के सब सुख, दुख जैसे खो जाते हैं। उसकी एक झलक मिल गयी तो बाहर का जीवन, मृत्यु जैसा हो जाता है। उसकी तुलना में फिर सब फीका हो जाता है। फिर इसमें दौड़-धाप नहीं रह जाती, संघर्ष नहीं रह जाता, युद्ध नहीं रह जाता, कलह नहीं रह जाती। ऐसे ही ध्यान को उपलब्ध व्यक्ति इस जगत में सुख की थोड़ी सी गंगा उतार सकता है।
ओशो

ये हैं कोलकाता के बांगुर स्थित ओशो रामकृष्ण मेडिटेशन सेंटर के संस्थापक ‘स्वामी’ शशिकांत और उनकी पत्नी ‘माँ ‘प्रेम पूर्णिमा। साल 2013 से शुरू हुए इस सेंटर के माध्यम से स्वामी शशिकांत और माँ पूर्णिमा ओशो के सिद्धांत को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हैं। इन्हीं के सौजन्य से हमें ओशो के सिद्धांतों की जानकारी मिली, जिसका एक छोटा हिस्सा उपर साझा किया गया है।

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