‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (13)

मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी

गर्म हो क्यों भला मिज़ाज नहीं
”रोज कहते हैं आप आज नहीं”

वक़्त कुछ चाहिए असर के लिए
ये दवा है कोई इलाज नहीं

उसको हालात ने बदल डाला
वैसे वो शख़्स बद-मिज़ाज नहीं

उसकी हर बात इक हक़ीक़त है
झूठ का इसमें इम्तिज़ाज (मिलावट) नहीं

जिसके दस्तूर (रस्म-ओ-रिवाज) में मुहब्बत हो
उससे बेहतर कोई समाज नहीं

रोज़ हड़ताल रोज़ एक जुलूस
कौन कहता है काम काज नहीं

तर्क-ए-दुनिया (दुनिया का त्याग) के बाद भी ‘तालिब’
किसको दुनिया की एहतियाज (ज़रूरत) नहीं

– मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

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