डॉ. एस. आनंद की कलम से व्यंग्य कविता ‘बीवी का शाप!’

डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार

बीवी का शाप!

आज घरवाली उखड़ गई
व्यर्थ ही मुझसे लड़ गई
बोली गरजकर-
दिन-रात मोबाइल में
सर हो खपाते
दो रुपए कमाकर
कहीं से न लाते।
कैसे चलाती हूं मैं चूल्हा-चौका
ऊपर से देते हो रोज मुझे छौंका
इतने बेशरम ह़ो कि
शरम भी लजाती
मगर अक्ल तेरी ठिकाने न आती।
काहे बने हो तुम बेहया के जंगल?
देती हूं शाप तेरा होगा न मंगल
जिस घर में औरत बिलखती रहेगी
उस घर में बरकत कभी ना टिकेगी।

● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार

यह भी पढ़ें : डॉ. एस. आनंद की कलम से व्यंग्य कविता ‘कहां महंगाई है भाई?’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here