डॉ. एस. आनंद की कलम से व्यंग्य कविता ‘चीन है कि मानता नहीं!’

डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार

चीन है कि मानता नहीं!

उसने कहा-भाई !
चीन है कि मानता नहीं
शायद हमारे सैनिकों के
पुरुषार्थ को पहचानता नहीं!
मैंने कहा-
सीधी सी बात है
लातों के भूत
बातों से कब मानते हैं?
उन्हें चाहिए दनादन लात
और उनसे हम कर रहे हैं बात?
हमें तोड़नी होगी
चीन से बातचीत की रीति
और समझना होगा
बिन भय होहिं न प्रीत।
अब चीन के साथ
पाकिस्तान भी ले रहा है हमसे पंगा
भूल रहा है अपना पुराना इतिहास
कितनी बार हो चुका है नंगा
जिस दिन बातचीत हो जायेगी बंद
उसी दिन ये दोनों देश
अपने दड़बे में घुसकर
गायेंगे अपनी बरबादी के छन्द।

● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार

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