‘एक घटना जिसने पूरी तरह से आस्तिक नहीं बनने दिया’ : वरिष्ठ पत्रकार सीताराम शर्मा की अनुभवी कलम से संस्मरण यात्रा

सीताराम शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं समाज चिन्तक

सीताराम शर्मा

उस समय हमारे परिवार में शादियां प्रायः देश (कलानौर, हरियाणा) में ही होती थी। 33 भाई-बहनों के परिवार में प्रत्येक वर्ष ही कोई न कोई विवाह होता था। एक ऐसी ही यात्रा के दौरान पिताजी का एक साधु बाबा से गांव में परिचय हुआ। बताया गया कि बाबा 12 वर्षों से खड़े हैं। हमारी बैठक में बाबा के निवास की व्यवस्था की गयी। धर्मपरायण पिताजी बाबा से बड़े प्रभावित हुए। गांव में उनकी सेवा में लग गए और जब उन्होंने आसन ग्रहण किया तो पिताजी ने हजारों रुपये खर्च कर एक बड़ा अनुष्ठान का आयोजन कराया। गुली-डंडा, कबड्डी, दौड़ आदि की प्रतियोगिता में गाँव के बच्चों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिये। दौड़ में मैं दि्वतीय स्थान पर रहा और पुरस्कार स्वरूप दो रुपये बाबा के हाथ से मिले। समारोह में गांव के थानेदार घोड़े पर आये थे। अचानक बाबा ने घुड़सवारी की इच्छा व्यक्त की। थानेदार, पिताजी एवं गांववालों के अचंभे व आशाओं के बीच बाबा, घोड़ा सरपट दौड़ाते ले गये। बाबा ने थानेदार की बंदूक से भी हवा में गोलियां दागी। इसे बाबा की अद्भुत क्षमता एवं चमत्कार समझ सभी धन्य थे। घोड़े से उतरते ही थानेदार सहित सभी ने बाबा के चरण-स्पर्श कर आर्शीवाद लिया। इसी क्षण पिताजी ने मुझे बाबा की चौबीस घंटे सेवा करने का निर्देश दे दिया।

कोलकाता में हुआ बाबा का आगमन

पिताजी के आमंत्रण को स्वीकार कर बाबा हमारे साथ कलकत्ता पधारे। हमारी मियां कटरा गद्दी में उन्हें ठहराया गया। भोजन की व्यवस्था या तो घर पर होती या घर से खाना बन कर जाता। घर पर आने पर मैं, उनके पांव अपने हाथ से धोता तथा और माँ सदैव उन्हें चांदी की कटोरी में अपने हाथ से भोजन परोसती थीं। शेयर बाजार से पिताजी के मित्र उनके दर्शन करने गद्दी आते थे। बाबा शेयर बाजार की तेजी-मंदी की भविष्यवाणी करने लगे। वहां भक्तों की भीड़ बढ़ रही थी।

शहरी अंदाज में दिखने लगे थे बाबा

मेरा स्कूल के अतिरिक्त प्रायः सभी समय बाबा की सेवा में बीतता था। देखते-देखते बाबा के पहनावे एवं दिनचर्या में परिवर्तन आने लगा। पीत वस्त्रों का स्थान पैंट एवं बुशर्ट ने लिया था, आँखों पर रंगीन चश्मा, चप्पल-खड़ाऊ की जगह जूता आदि। मेरे पिताजी सहित उनके मित्र भक्तों की आस्था में कोई भी कमी नहीं दिखी, वे इसे सब बाबा की लीला समझते थे। मैं 12-13 वर्ष का था। पिताजी की अटूट भक्ति से प्रभावित मैं, बाबा को अलौकिक शक्ति मान उनकी श्रद्धापूर्वक सेवा करता था। एक दिन अचानक बाबा ने कहा कि ईश्वर के आदेशानुसार मोह-माया से दूर वे पहाड़ों पर तपस्या के लिए जाना चाहते हैं। हमारा पूरा परिवार एवं कई भक्त हावड़ा स्टेशन पर बाबा को छोड़ने गये। मेरी माँ ने बाबा को चाँदी की थाली-कटोरी-गिलास का वह सेट भेंट में दिया, जिसमें वे प्रत्येक दिन भोजन करते थे। बाबा ने कहा वे दिल्ली से अनिर्दिष्ट गंतव्य की ओर रवाना हो जाएंगे एवं 10 वर्ष के बाद प्रकट होंगे।

बाबा के रहस्य से उठा पर्दा

बाबा के कलकत्ता से प्रस्थान होने के एक-दो महीने के भीतर ही समाचार मिली की बाबा को हत्या के आरोप में जबलपुर के पास गिरफ्तार कर लिया गया है। डकैती एवं हत्या के आरोप में बाबा 12 वर्षों से फरार थे और हाल में एक और हत्या के जुर्म में पुलिस ने उन्हें रंगेहाथ गिरफ्तार किया है। यह खबर सुनकर माताजी की स्थिति ऐसी थी जैसे ‘काटो तो खून नहीं’। वे बहुत विचलित हो गयी थीं। पिताजी विश्वास नहीं कर पा रहे थे लेकिन अविश्वास का उस समय कोई कारण नहीं रहा, जब गांव के लोगों ने कई स्थानीय अखबारों की कतरनें भेजी, जिसमें घटना का विवरण बाबा के फोटो के साथ छपा था।

इस घटना ने पूरी तरह से आस्तिक नहीं बनने दिया

बचपन की इस घटना का किस पर कितना प्रभाव पड़ा, मुझे नहीं मालूम लेकिन मैं बहुत प्रभावित हुआ। साधु-संतों पर से ही नहीं मंदिरों व धार्मिक अनुष्ठानों पर से ही मेरा विश्वास हिल सा गया। उक्त समाचार मिलते ही बाबा की सरपट घुड़सवारी, बंदूक चलाना, पैंट-शर्ट, रंगीन चश्मा सभी दृश्य आँखों के सामने घूमने लगे। मैं नास्तिक नहीं हूँ लेकिन इस घटना के बाद पूरी तरह से आस्तिक भी नहीं हो पाया।

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