‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (34)

मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी

उसकी दरिया दिली आईना आईना
मेरी तिश्ना लबी (प्यासे होंठ) आईना आईना

शह् र में, दश्त (जंगल) में, कोह (पहाड़) में, बह् र (समुन्दर) में
मेरी आवारगी आईना आईना

धूप में छाँव में आज भी गाँव में
है वही सादगी आईना आईना

आँख भी चाहिए देखने के लिए
उसकी जलवा गरी आईना आईना

आईनों पर कभी मैं हंसा था बहुत
हंस रहा है अभी आईना आईना

मैं ने पत्थर उठाया था क्या हाथ में
दुनिया कहने लगी आईना आईना

मेरे ऐब-ओ-हुनर सब हैं ‘तालिब’ अयाँ
मेरी ख़ूबी कमी आईना आईना

■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

यह भी पढ़ें : ‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (33)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here