‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (20)

मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी

अब हवाओं पे डालो पहरे ज़रा
मेरे आँगन भी ख़ुशबू ठहरे ज़रा

आईना दे न उसको ऐ मौसम
जा छुपा दे गुलों के चेहरे ज़रा

बख़िया गर (रफ़ू करने वाला) क्यों न सर-ब-ज़ानू (जांघों पर सिर रखना) हो
ज़ख़्म दिल के मिरे थे गहरे ज़रा

अब तो ज़ुलमात (अन्धेरा) से निकल आऊँ
जाने कब होंगे दिन सुनहरे ज़रा

शोर धड़कन में था मगर ‘तालिब’
लोग ही हो गये थे बहरे ज़रा

■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

यह भी पढ़ें : ‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (19)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here